मरने से ठीक पहले दिमाग क्या सोच रहा होता है, just before death our brain thinking

मौत के समय आदमी के दिमाग मे क्या चल रहा होता है। किसी को इस बारे में पूर्ण जानकारी नहीं है, कुछ जानकारी वैज्ञानिकों को पता है, फिर भी यह एक राज ही है। प्रयोगों से मृत्यु के तंत्रिका के बारे में रोचक जानकारी भी मिली है। बर्लिन की चेरिट यूनिवर्सिटी और ओहायो की सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने जेन्स द्रेयर के निर्देशन में ऐसे प्रयोग किये हैं। उन्होंने रोगियों के तंत्रिका तंत्र की अच्छे से निगरानी की। ये लोग या तो भीषण सड़क दुर्घटना में घायल हुए थे या स्ट्रोक और कार्डिएक अरेस्ट का शिकार हुए थे। वैज्ञानिकों ने पाया कि पशु और मनुष्य दोनों के मस्तिष्क मृत्यु के समय एक जैसे व्यवहार करते हैं, एक समय पर तो दिमाग आभाषी रूप से कार्य करने लगता है।
   इस प्रयोग का उद्देश्य भी यही था कि मृत्यु के समय दिमाग कैसे कार्य करता है, किसी को जीवन के अंतिम समय में कैसे बचाया जा सकता है। हम जानते हैं कि मृत्यु के समय रक्त का प्रवाह रुक जाने के कारण मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। सभी जरूरी आयन मष्तिष्क की कोशिकाओं को छोड़कर अलग हो जाते हैं, जिससे एटीपी की आपूर्ति कमज़ोर पड़ जाती है। एटीपी ही हमारी ऊर्जा की करेंसी है, हमारी ऊर्जा इसी रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती है। इसके बाद टिश्यू रिकवरी नही हो पाती है।वैज्ञानिकों ने पाया कि नौ में से आठ रोगियों के मस्तिष्क की सेल्स मृत्यु को रोकने की कोशिश कर रहीं थी। हृदय की गति रुक जाने के बाद भी मस्तिष्क की कोशिकाएं और न्यूरॉन काम कर रहे थे। यह प्रक्रिया पूरे मस्तिष्क में एक साथ होती है, इसे अनडिस्पर्स्ड डिप्रेशन कहा जाता है। इसके बाद की स्थिति को डिपोलराइज़ेशन ऑफ डिफ्यूजन कहते है, जिसे आम भाषा में सेरेब्रल सुनामी भी कहते हैं। इलेक्ट्रोकैमिकल बैलेंस की वजह से मस्तिष्क की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं जिससे बड़ी मात्रा में थर्मल एनर्जी रिलीज़ होती है, इसके बाद मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। डिपोलराइज़ेशन को ऊर्जा की आपूर्ति करके मृत्यु को रोका जा सकता है। इसमे अभी बहुत शोध किये जाने बाकी है। इनमें से कई सवालों के जबाव ढूंढना है, जिसके लिए बहुत सारी जटिल प्रयोग और जानकारी एकत्रित किये जाने है।

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