विजय माल्या और नीरव मोदी जैंसे मामले सामने आने के बाद सरकार इस तरह के केसों पर रोक लगाने की कोशिश कर रही है। बैंक को ये निर्देश दिया गया है कि जिसने भी 50 करोड़ से अधिक का कर्ज लिया है, उसका पासपोर्ट का विविरण अपने पास रखें, जिससे कि कोई कर्जदार भागने की कोशिश करे तो उस पर रोक लगाई जा सके। इसके अलावा कर्ज के फार्म में भी बदलाव किया गया है। पिछले हफ्ते मंत्रिमंडल ने भगोड़ा आर्थिक अपराधी विधेयक 2018 को मंजूरी दी थी। इससे ऐसें लोगों के खिलाफ तेज़ी से कार्यवाही होगी, साथ ही उनकी संपत्ति और बेनामी सम्पत्ति भी जब्त की जाएगी।
आखिर नीरव मोदी को इतना कर्ज दिया क्यों था- ये पीएनबी से बायर्स क्रेडिट लिया करते थे। बायर्स क्रेडिट 90 से 180 दिन का उधार होता है जो इंटरनेशनल बैंक इंपोटर्स को देते हैं। बायर्स क्रेडिट का आधार होता है बैंक का अपने कस्टमर को दिया गया लेटर ऑफ कम्फर्ट। लेटर ऑफ कम्फर्ट से तय होता है कि उसकी क्रेडिट हिस्ट्री क्या है, वह कितना पैसा चुका सकता है, उसका पिछला लेन-देन कैसा रहा है। इस तरह के लेटर ऑफ कंफर्ट कंपनी को पहले से ही मिलते रहे हैं जबकि बैंक में इसका कोई रिकॉर्ड ही नही था। यह बैंक के दो अधिकारी फर्जी ही जारी कर रहे थे, जिसके आधार पर कंपनी इंटरनेशनल बैंक की शाखाओं से लेटर ऑफ क्रेडिट लेती रही।
विजय माल्या की कंपनी का घाटा साल-दर-साल बढ़ता रहा। वह बैंकों से कर्ज लेता रहा। उस पर बकाया कर्ज 9000 करोड़ रुपए तक हो गया। उनके ट्रेडमार्क सीज किए गए। लेकिन पूरी रिकवरी नहीं हो पाई। बार-बार गुजारिश के बावजूद बैंकों ने माल्या को फ्रॉड घोषित कर शिकायत दर्ज नहीं कराई। जांच एजेंसी ने अपनी पहल पर ही केस दर्ज किया। वकीलों ने 1 मार्च को उसके देश छोड़कर भागने की आशंका जताते हुए उसके पासपोर्ट जब्त करने की मांग की थी, पर इसे नामंजूर कर दिया गया और उसके खिलाफ कोई वारंट न होने के कारण वह भागने में सफल हो गया।
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