भारत में शिक्षा के प्रति रुझान

भारत में शिक्षा के प्रति रुझान प्राचीन काल से ही देखने को मिलता है। प्राचीन काल में गुरुकुलों, आश्रमों तथा बौद्ध मठों में शिक्षा ग्रहण करने की व्यवस्था होती थी। शिक्षा में आगे निकलने के होड़ बड़ो में बहुत ज्यादा लगी हुई है। बच्चों पर इस को लेकर दबाब बनाये जाने की घटना आम हैं। इन बातों का असर बच्चो पर बहुत दिख रहा है वह सीखने की बजाय रटने पर ध्यान दे रहे हैं।कभी कभी 100 में से 90 लेने वाले विद्यार्थी को भी उतना ज्ञान नही होता है जितना उसे होना चाहिये।

कुछ लोगो का कहना है कि आपको बस ज्ञान होना चाहिए सिर्फ परीक्षा में अंक लाना ही पर्याप्त नही है, यह बात सही है पर पूरी तरह नही क्योंकि बहुत से लाभ और छात्रवृत्ति बस अच्छे नम्बरों को देखकर ही दिए जाते है तो फिर नम्बरों के पीछे भागना स्वाभाविक है पर इस दौड़ में हमे अपने आधारभूत मूल्यों को नही भूलना हैं और हमे वास्तविक नॉलेज होना भी जरूरी है और छात्र अपने व्यक्तित्व को निखारने पर भी ध्यान दे पाए. क्षेत्रीय भाषा ज्यादातर प्राथमिक विद्यालयों के लिए शिक्षा का माध्यम है और दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी आमतौर पर ग्रेड 3 से शुरू होती है। भारत में शिक्षा प्रणाली के बारे में सबसे अच्छी बात ये है कि यह एक बच्चे की शिक्षा की नींव को बहुत महत्व रखकर बहुत सुन्दरता से तैयार करता है।

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